सूखने से बचाएं ‘पानी’ को...

हा हिंदी लेख जुना आहे. विवाह पिक्चर आला होता, तो बघितल्यावर लिहिला होता....

आंखों का पानी कमबख्त इतना ढीठ है कि आसानी से नहीं निकलता। लड़कियों, महिलाओं की बात निराली है।

मुद्दत बाद कुछ ऐसा हुआ कि फिल्म देखते-देखते आंखें भर आईं। न सिर्फ भर आईं बल्कि छलकीं भी। ऐसा अनुभव पहले नहीं हुआ था। सोचते-सोचते अच्छा लगा कि यार, अभी तक अपनी आंखों का पानी सूखा नहीं है। इसे सूखने से बचाना जरूरी है। दरअसल पिछले कुछ सालों से व्यस्तता बढ़ी है। समय के साथ चलने की जुगत में हर कोई न चाहते हुए भी मशीन बन ही जाता है। पहले ऐसा नहीं होता था। क्योंकि हर दिन कोई न कोई ऐसी बात हो ही जाती थी कि इसे निकलने का रास्ता मिल जाता था। या यूं कहें कि बह भले न पाता हो, घिर तो आता ही था।

आप कहेंगे मजाक कर रहे हो यार...!

रोज कैसे मिलेगा मौका...?

क्योंकि यह ‘पानी’ कमबख्त इतना ढीठ है कि आसानी से नहीं निकलता। लड़कियों, महिलाओं की बात निराली है।

पुरुषों की बात करें तो उनकी समस्या यह है कि वे इसे जाहिर नहीं कर सकते। हमेशा डर लगा रहता है कि यह टिप्पणी न सुनने मिल जाए कि ‘क्या लड़कियों की तरह टसुए बहाता है यार...!’

चहुंओर टीवी छा जाने से पहले रेडियो हुआ करता था। घर में न भी हो, तो पड़ोसी के घर बज रहे रेडियो पर सीलोन, विविध भारती या किसी दूसरे केंद्र से हवा के साथ तैरती हुई लता दीदी की आवाज कानों तक पहुंच ही जाती थी, तलत साहब थे, रफी, मुकेश थे। इन हस्तियों की आवाज में कोई न कोई गीत ऐसा होता ही था, जो पल भर के लिए ही सही, उदास कर देता था। इस उदासी का अर्थ, उसकी लज्जत बहुत प्यारी होती थी, दिल को छू देने वाली। इनके अलावा और भी कई लोग थे।
एक थी रसूलन बाई-

उनका ‘मोरा सैंया बुलाए आधी रात, नदिया बैरी भईं...’ जब रेडियो पर बजता, तो मन बरबस उस दर्द को महसूस करने लगता था।

उम्र के साथ शास्त्रीय संगीत में रुचि बढ़ी। एक थे वसंतराव देशपांडे, ‘राज कल्याण’ राग में उनकी एक बंदिश है-

‘हमारी अरज सुनो...,
दीनदयाल नाथ दुख भंजन...
नित गावत गुणगान...
हरि तुम्हरो...’

मुश्किल से पांच से सात मिनट की चीज है, पर है गजब की। उन्हीं के ‘नटभैरव’ की बंदिश है-

‘मान अब मोरी बात,
पिहरवा बिनती करत समझावत...।’

इसे सुनने के बाद बिनती शब्द के प्रति नजरिया ही बदल गया। इसी से जुड़ा दादरा था-

‘बिंदिया ले गई हमारी रे मछरिया...
जाए कहो कोई छोटे देवर सों,
जमुना में जार डरावो रे...’

ऐसी मिन्नत कोई करे तो बताइए पलकें भीगेंगी या नहीं!

एक थीं निर्मलादेवी, रेडियो पर ही बजता था-

‘सितमगर तेरे लिए,
मैंने लाखों के बोल सहे...।’

नहीं भई, कोई भी आदमी इतना निष्ठुर नहीं हो सकता कि न पिघले। ढेरों उदाहरण हैं।

माणिक वर्मा की ठुमरी है-

‘अकेली मत जईयो राधे जमुना के तीर...’

इसमें तार सप्तक तक स्वर पहुंचने पर वे कहती हैं-

‘जमुना के तीर गौए चरावत,
बांसुरी बजाते कान्हा...’

यहां उनका जो स्वर लगा है उसे सुनकर आंसू आ ही जाते थे।

तलत साहब का गैर फिल्मी गीत था-

‘तस्वीर तेरी दिल मेरा बहला न सकेगी...
ये तेरी तरह मुझसे तो शरमा न सकेगी...!’

यह तलत का पहला गीत था। इसमें वे कहते हैं-

‘मैं बात करुंगा तो ये खामोश रहेगी,
सीने से लगा लूंगा तो ये कुछ न कहेगी।
आराम वो क्या देगी, जो तड़पा न सकेगी...।’

बताइए भला, दिल भर नहीं आएगा क्या?

इसके लिए जिम्मेदार बेशक रेडियो था। पर शहर की फिजां भी उतनी ही जवाबदार थी। टिकरापारा का महाराष्ट्र मंडल व तिलकनगर के राममंदिर में गणेशोत्सव के दौरान एक दिन शास्त्रीय संगीत की सभा होती ही थी। यही वे दो मंच थे, जहां चित्रा मोडक, पं जसराज, पं विद्याधर व्यास, पं जितेंद्र अभिषेकी, प्रभाकर कारेकर, पं उपेंद्र भट, मालिनी राजुरकर व दूसरे कलाकारों को देखने-सुनने का मौका मिला। प्रताप टाकीज के पास वाली गली में घुसते ही वाजपेयी ग्राउंड पार करने के बाद माइक से गूंजती आवाज सुनाई देती थी, जिसे सुनकर अहसास हो जाता था कि आज की रात यादगार रहेगी। उम्र के 48 वें बसंत में आज याद करने पर ऐसी कई रातें याद आती हैं। राम मंदिर ने तो अपना चोला ही बदल डाला, पर दीवारें तो वही हैं।

बिजली गुल होने के बाद भी पं विद्याधर व्यास के ‘मियां मल्हार’ की

‘करीम नाम तेरो...तू साहेब करतार...’
भी ऐसी ही बंदिश थी, जिसने पलकों के कोर भिगो दिए थे।

मालिनी राजुरकर का गायन था। ‘बागेश्री’ के बाद एक चीज खत्म हुई, तो श्रोता बोर होकर उठने लगे। अपुन ठहरे अंतिम पंक्ति के कानसेन...। सो बाहर खिड़की के पास खड़े होकर कार्यक्रम सुन रहे थे। बाजू में ही एक परिचित बैंककर्मी साउंड बाक्स के सामने टेप रखकर कार्यक्रम रिकार्ड कर रहे थे। उन दिनों टेप रिकार्डर का चलन जो था।
तो, लोग अपनी जगह छोड़कर उठने लगे, और उधर स्टेज से पुकार सुनाई दी-

‘ओ मियां जाने वाले...
अल्ला दे कसम फिर आवे...’

यह स्वर सुनते ही जो लोग खड़े हो चुके थे, सभी पहले तो ठिठके। फिर स्टेज की ओर देखने लगे कि यह कौन सी चीज है। फिर एक-एक कर सभी चुपचाप अपनी जगह पर बैठ गए। यकीन कीजिए, उस दिन पूरा कार्यक्रम खत्म होने के बाद ही हॉल खाली हुआ था। वो चीज यानी राग ‘काफी’ में ‘टप्पा’ था।

संगीत पर हुए एक सेमिनार में (गुणवंत व्यास भी थे वहां) आकाशवाणी की एक स्थानीय एनाउंसर ने कहा था-‘आकाशवाणी से शास्त्रीय संगीत का प्रसारण बंद कर दिया जाना चाहिए।’ उनकी दुआ कहें या कुछ और, प्रसारण तो कम हो ही गया है। वे शायद यह नहीं जानती कि ग्रामीण इलाकों के लिए रेडियो आज भी वरदान है।
जीवन में लगभग रोज ऐसे प्रसंगों से हम रुबरु होते हैं, जो हमें भावुक बनाते हैं। संगीत से दूरी के चलते आज भावुकता खत्म हो रही है। इसीलिए आंखों का ‘पानी’ सूखता जा रहा है। यह पिघलना ही तो कम हो रहा है। इसे रोकने की जरुरत है।

अपने बच्चे को संगीत से जोड़ो...
चक्रधर समारोह के लिए जाते समय उस्ताद बिस्मिल्ला खान के साथ कुछ समय बिताने का अवसर मिला था। वे बार-बार यही कह रहे थे-
‘अपने बच्चे को संगीत से जोड़ो। उसे एक भजन ही सिखाओ। संगीत ही ऐसा क्षेत्र है जिसमें आस्तीनें नहीं खिचतीं।’

वैसे इतना सब याद आने के लिए जो फिल्म कारण बनी, उसका नाम था-विवाह...।
----------------

ललित लेखनाचा प्रकार: 
field_vote: 
4.5
Your rating: None Average: 4.5 (2 votes)

प्रतिक्रिया

तुमचं लेखन आवडु लागलं आहे.आमचं हिंदीलेखन वाचन फार नाही परंतू इंदोर,नागपुरकडचं हिंदी कानाला गोड वाटतं.

  • ‌मार्मिक0
  • माहितीपूर्ण0
  • विनोदी0
  • रोचक0
  • खवचट0
  • अवांतर0
  • निरर्थक0
  • पकाऊ0

लेख आवडल्या बद्दल थैंक्स....

  • ‌मार्मिक0
  • माहितीपूर्ण0
  • विनोदी0
  • रोचक0
  • खवचट0
  • अवांतर0
  • निरर्थक0
  • पकाऊ0

रवींद्र दत्तात्रय तेलंग

लेख छान आहे, पण शक्यतो इथे मराठीच लेखन द्यावं ही विनंती.

  • ‌मार्मिक0
  • माहितीपूर्ण0
  • विनोदी0
  • रोचक0
  • खवचट0
  • अवांतर0
  • निरर्थक0
  • पकाऊ0

- ऋ
-------
लव्ह अ‍ॅड लेट लव्ह!

असं करता येईल- मूळ हिंदी लेख वर्डप्रेसवर ,त्याची लिंक,मराठीत इथे आता लिहून काही नवीन नोंदी जोडा-मागे वळून पाहता.
जुन्या लेखाला जो मातीचा गंध येतो तो नवीन टिपणास येत नाही.

  • ‌मार्मिक0
  • माहितीपूर्ण0
  • विनोदी0
  • रोचक0
  • खवचट0
  • अवांतर0
  • निरर्थक0
  • पकाऊ0

होय लिंक देण्याचा पर्याय उत्तम आहे! फक्त ते नव्या धाग्या ऐवजी सध्या काय वाचताय मध्ये देता येईल.
किंवा मग लिंक देऊन त्यावर आताच्या स्वतच्या भावना, मते, वगैरे इथे मराठीत देता येईल

पण एकोळी धागेही नकोत प्लीज

  • ‌मार्मिक0
  • माहितीपूर्ण0
  • विनोदी0
  • रोचक0
  • खवचट0
  • अवांतर0
  • निरर्थक0
  • पकाऊ0

- ऋ
-------
लव्ह अ‍ॅड लेट लव्ह!

नमस्कार! तुमचे लेखनकौशल्य कौतुकास्पद आहे. मराठी आणि हिंदीसुद्धा! हिंदी वाचनाची अजिबात सवय नसूनही तुमचा लेख जवळजवळ सगळा समजला. एक विनंती करू का, शक्य झाल्यास हाच लेख मराठीत लिहून प्रकाशित करू शकाल का? शिवाय, दोन परिच्छेदांच्या मधे एक ओळ मोकळी सोडल्यास वाचावयास सुलभ होईल.

(अवांतर: पुण्यात राहून जे काही थोडंफार हिंदी कानावर पडतं त्यापेक्षा अत्यंत उच्च दर्जाचं आणि गोड असं हिंदी वाचून आनंद झाला.)

  • ‌मार्मिक0
  • माहितीपूर्ण0
  • विनोदी0
  • रोचक0
  • खवचट0
  • अवांतर0
  • निरर्थक0
  • पकाऊ0

'मत जइयो राधे' शी अगदी सहमत.
या लेखाचं भाषांतर नका करू. त्यापेक्षा याच विषयावर एक नवीन लेख लिहा. भाषांतरात सगळी मजा आणि उत्स्फूर्तता निघून जाते.

  • ‌मार्मिक0
  • माहितीपूर्ण0
  • विनोदी0
  • रोचक0
  • खवचट0
  • अवांतर0
  • निरर्थक0
  • पकाऊ0

लेख फार आवडला.

  • ‌मार्मिक0
  • माहितीपूर्ण0
  • विनोदी0
  • रोचक0
  • खवचट0
  • अवांतर0
  • निरर्थक0
  • पकाऊ0