कविता |
एकदा काय झाले कुणास ठाऊक |
स्वयंभू |
कविता |
इथे हजारात एखादा निवडला जातो |
स्वयंभू |
कविता |
यत्र तत्र सर्वत्र |
स्वयंभू |
कविता |
संदर्भ नसलेली संस्कृती |
स्वयंभू |
कविता |
लक्ष्मीनारायणाचा महिमा. |
प्रियाली |
कविता |
असा एकांत हा |
स्वयंभू |
कविता |
लग्न आणि प्रेम |
स्वयंभू |
कविता |
बघण्याची insight |
स्वयंभू |
कविता |
रोजदांजी कथोकल्पित |
स्वयंभू |
कविता |
देवा तुझी कमाल आहे |
स्वयंभू |
कविता |
इथे माणूस मरतो |
स्वयंभू |
कविता |
गद्या राधा |
मुग्धा कर्णिक |
कविता |
मीरा |
शान्तादुर्गा |
कविता |
कोळी... |
श्वेता |
कविता |
"तू " अधिक " मी " किती ? |
khilaji |
कविता |
अजून एक नकार मोहोरला |
khilaji |
कविता |
बाईंना केळे आवडते , म्हणून बाग केली |
khilaji |
कविता |
माझ्या आयटमचा बाप |
khilaji |
कविता |
दोन मोती, दूर दूर शिंपल्यामध्ये वाढले |
khilaji |
कविता |
|| "ऐसी" हुच्चभ्रूंची लक्षणे || |
anant_yaatree |
कविता |
नकळत |
anant_yaatree |
कविता |
वळूनी मागे मी बघता , शल्य बोचते मनाला |
khilaji |
कविता |
मीच आहे तो,,, अनभिषिक्त सम्राट |
khilaji |
कविता |
एक वेळ अशी येते कि |
khilaji |
कविता |
जोर काढुनी पोर काढलं , काट्यावरचं बोर निघालं |
khilaji |