कविता |
यत्र तत्र सर्वत्र |
स्वयंभू |
कविता |
उत्तरप्रदेशात झालेल्या निर्घृणपणे अत्याचाराबद्दल |
स्वयंभू |
कविता |
येथे मृत्यूचाही बाजार होतो |
स्वयंभू |
कविता |
शूर आम्ही दंगलखोर |
स्वयंभू |
कविता |
प्रत्येकाचं बरं चाललंय |
स्वयंभू |
कविता |
इथे माणूस मरतो |
स्वयंभू |
कविता |
संदर्भ नसलेली संस्कृती |
स्वयंभू |
कविता |
एक जूनी कविता |
स्वयंभू |
कविता |
दि ग्रेट एडव्हेंचर |
स्वयंभू |
कविता |
पुतळेच पुतळे |
स्वयंभू |
कविता |
सत्ता, पैसा और डर |
स्वयंभू |
कविता |
मी एक एकटा भरकटलेला |
स्वयंभू |
कविता |
गांधीगौरव |
स्वयंभू |
कविता |
लग्न आणि प्रेम |
स्वयंभू |
कविता |
डोंगर आणि ढग |
स्व |
कविता |
कातरवेळ |
स्व |
कविता |
तरंग |
स्व |
कविता |
वाया गेलेली बाई..!! (फेसबुक वर सात जणांनी शेअर केलेली आणि साठ कॉमेंट आलेली....माझी 'फेसबुक बाईची' कविता :)) |
स्मिता जोगळेकर |
कविता |
आणि मग..!! |
स्मिता जोगळेकर |
कविता |
प्रवास . |
स्मिता जोगळेकर |
कविता |
पार्टी...........!!! |
स्मिता जोगळेकर |
कविता |
मिठी |
स्मिता जोगळेकर |
कविता |
बोगदा |
स्मिता जोगळेकर |
कविता |
मिठी दिठीची गाथा. |
स्मिता जोगळेकर |
कविता |
<u><b>पुरावे </b></u> |
स्मिता जोगळेकर |