कविता |
निष्ठुर कली मन अन कीर्तन मायेचे |
khilaji |
कविता |
माझ्यासारखं प्रेम कुणी केलंच नाही |
khilaji |
कविता |
जोर काढुनी पोर काढलं , काट्यावरचं बोर निघालं |
khilaji |
कविता |
सिंव्हाचा छावा धुळीस मिळाला |
khilaji |
कविता |
दोन मोती, दूर दूर शिंपल्यामध्ये वाढले |
khilaji |
कविता |
सुंदरी चिचुंद्री निघाली |
khilaji |
कविता |
आजकालचे सौंदर्य डोळ्यात मावत नाही |
khilaji |
कविता |
एक वेळ अशी येते कि |
khilaji |
कविता |
बाईंना केळे आवडते , म्हणून बाग केली |
khilaji |
कविता |
ओंजळीत शब्द मोजकेच माझ्या |
khilaji |
कविता |
शहराकडून "बा" चा फून आला |
khilaji |
कविता |
माझ्या आयटमचा बाप |
khilaji |
कविता |
स्वप्नात एकदा चार सिंव्ह मारले |
khilaji |
कविता |
च्या मारी लय भारी , आपली लव्हस्टोरी एकदम न्यारी |
khilaji |
कविता |
माळढोक पर्वाचा अंत झाला |
khilaji |
कविता |
वळूनी मागे मी बघता , शल्य बोचते मनाला |
khilaji |
कविता |
रात्रीला पंख फुटले |
khilaji |
कविता |
बळीराज किंकर अख्नंडीत माझे |
khilaji |
कविता |
पाऊस, पुस्तकं आणि कविता |
May |
कविता |
माणूस माणूस म्हणतात मला |
Nikita Vaidya |
कविता |
(अर्धवटाच्या फ्लोटर्स घालून मी) |
Nile |
कविता |
अस्थिर स्वप्नांच्या नंतर |
Ninad Pawar |
कविता |
पंखा |
Ninad Pawar |
कविता |
असच |
Ninad Pawar |
कविता |
मैफिल |
Ninad Pawar |